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Kavita Kosh से
पिघले तारकोल में<br>
हवा तक चिपक जाती है बहती बहती,<br>
किन्तु इस गमीर् गर्मी के विषय में किसी से<br>
एक शब्द नही कहता हूँ मैं। <br><br>