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रूंख अर देस / भंवर कसाना

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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
बरसां बरस सूं
छंगारां रै हाथां
छंगीजता
रूंखां रै डाळां
रूत बदलतां ई
आ ज्यावै
नूंवा पान
व्है ज्यावै
घेर-घुमैर
पैली सूं फूटरा
पण अफसोस
नेतावां रै हाथां
अेकर ई
छंगीज्योड़ो
म्हारो देस
इता बरसां पछै ई
क्यूं नीं हुयो?
पैली जिस्यो घेर-घुमैर।

</poem>
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