भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सुबह से ही माँ जुट जाती है
चौका-बर्तन में
कहीं बेटा भूखा न चला जाए ।जाए।
लड़कर आता है पड़ोसियों के बच्चों से
माँ के आँचल में छुप जाता है
अब उसे कुछ नहीं हो सकता ।सकता।
बच्चा बड़ा होता जाता है
बेटा कामयाबी पाता है
माँ भर लेती है उसे बाँहों में
अब बेटा नजरों से दूर हो जाएगा ।जाएगा।
फिर एक दिन आता है
बहू के क़दमों का इंतज़ार है उसे
आशीर्वाद देती है दोनों को
एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत के लिए ।लिए।
माँ सिखाती है बहू को
बोलती है
बहुत नाजों से पाला है इसे
अब तुम्हें ही देखना है ।है।
माँ की ख़ुशी भरी आँखों से
आँसू की एक गरम बूँद
गिरती है बहू की हथेली पर ।पर।
</poem>