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|रचनाकार=संजय पुरोहित
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
भूख घालै घेरो
गरीब रै आंगणै
नीं करै खंखारो
नीं बजावै सांकळ
पण छोडै नीं लारो
आय धमकै
आये दिन, हरमेस
ऊंच चिंतावां रो भारियो
बिन्या कोई दिन टाळ्यां।

दिनूगै-सिंझ्या
भूखै पेट उडीकता
मा-बापू
टाबर-टीकर
किण नै कैवै
अर कैवै ई कांईं
जुलमण भूख
थकै, नीं मरै
भखै गरीबड़ां रा डील
सुरसा ज्यूं बधती
इण डाकण वरणीं सूं
छूटै नीं लारो
आ सोचतो डोकरो
निकळै घर सूं बारै
चूंचां रै चुग्गै सारू
मन में विचारतो
कित्तो भलो होंवतो
जे जग में नीं हांेवती
आ निसरमी भूख।

</poem>
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