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|रचनाकार=कुंजन आचार्य
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
मन रो प्रेम
जुबां पे आयो।
साल बड़ो कमाल है
ढाई आखर चाल है।

जुल्फ घनेर आंगळयां
दोई लिपट-लिपट पळया।
होठां पे छपग्या गजल-गीत
पलकां पे चौपाई लिख दी।
प्रेम संगत री ताल है
ढाई आखरी पाल है।

हाथ मल्यो थारां हाथां सूं
लाड लडाओ रजनीगंधा।
गळै मल्या री मन में रेईगी
अण्डो बडो मलाल है।
ढाई आखर चाल है।

</poem>
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