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|रचनाकार=अशोक परिहार 'उदय'
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

बेघर हो खुद
निज रा घर
बणावण-बसावण रै
आंधै सुवारथ मिस
आंधै मिनख
उजाड़्या म्हारा घरआळा
खुद री ई मेटी पीड़
म्हारी तो बधाई नीं
बेघर होवण री पीड़
देय'र झपीड़?


</poem>
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