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आस / मनमीत सोनी

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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
वो भूलणो चावै
अबार-अबार कटयै
आपरै कनखै नैं
अर लूटणो चावै
एक नूंवों कनखो

वीं री बात और है
पण
म्हैं नीं छोडी है आस
तन्नैं फेरूं पाणैं री

तन्नैं फेरूँ पा ई लेस्यूं म्हैं...

कनखो नीं
कविता होगी है इब थूं।
</poem>
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