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|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
उण दिन
नेताजी कनै बो आयो
आपरो दुखड़ो बतायो
कैयो-
‘मायड़ भासा बिना
म्हारी कांई पिछाण ?
बै बोल्या-
‘थूं सही कैवै
पण म्हारी भी तो
मजबूरी पिछाण।
भासावां खातर
राज सूं नीं लड़ीजै
कुरसी माथै
ध्यान नीं तेवड़ीजै।
पैली कुरसी आवै
फेरूं करसां बात
मायड़ भासा तो अठै ई है
जावै कठै है
कुरसी गई, तो
थारै सागै हां
म्हैं खाली
राज मांय आगै हां।‘

</poem>
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