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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
फेरूं आयो भागतो
बो अकाळ
बारबार आवै
मानखै नै डरावै
मिनखजूण सूं भगावै।
काळ बण ‘र आवै अकाळ
अेक मिनख नीं
उण री केई पीढयां नै
सागै लेय ‘र जावै
लेजावती थको मुळकै
मिनख रो जीव कळपै,
पण
कीं नीं सुणै
कीं नीं देखै
बस आवै, अर
मिनखां लेय ‘र भाग जावै।
गाव रो रूंख
खाली बो अेकलो रूंख
उण री हंसी उडावै
अकाळ मांय भी मुस्कावै
छाती ठोक ‘र
साम्ही ऊभो हुय जावै
मिनखां नै आ बतावै-
जे काळ रै साम्हीं अड़सो
मुळक ‘र उणरै माथै में
दोय सोट धरसो
तो
उणनै भी पड़ जावैला
मानखै रो अकाळ
नीं बण सकैला
बो किणी रो काळ।
मिनख हो
बणणो पड़सी रूंख
पछै
नीं तो काळ
नीं अकाळ।

</poem>
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