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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
उण बरस राम रूसग्यो
बापड़ै हरियै रो
घर ई तूटग्यो
घर मांय नां ही दाणा
रोटी रा पड़ग्या लाला
बेटी बसंती रो करणो हो ब्यांव
घणो कोड हो
घर मांय राम रमतो
पण
अकाळ घर नै तोड़ग्यो
दुखां सूं जोडग्यो
उण दिन आया सायजी
सगपण तोड़ दियो
हरियै रै जीवण नै
दुखां पासी मोड़ दियो
राम रूस्यो तो अकाळ आयो
अकाळ आयो तो
दुख आयो
सुपनां नै भांगग्यो
ओ अकाळ
आखै घर खातर बणग्यो काळ।

</poem>
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