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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
नूंवो जमानो आयो
हरियै रो छोरो
भूरियै री छोरी नै
लेय ‘र भाजग्यो
बरसां रो हेत
अेक मिनट मांय तूटग्यो
हरियो दोनूं घरां मांय
लाय लगायग्यो।
रोटी री सीर मांय
किरकिरी पड़गी
गांव मांय
दो पारटया बणगी।
उण दिन सूं ई
अेक गांव
दो -फाड़ हुयग्यो
जाणै नूंवो जमानो
घर -घर मांय राड़ करग्यो।

</poem>
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