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|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

रूंख जीव है
जींवतो जीव
जावै नीं कठैई
सांस पण लेवै
मिनख रै दाईं
विग्यान बतावै!

रूंख जीव है तो
रूंख री धड़ है
ऊंडी पड़ी जड़
पान छाई पेडी
मुंडो है फगत
हठीले रूंख रो
मुंडो देख्यां
धड़ नै भी अटल
साम्भणी पड़ैला!
</poem>
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