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|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>
आओ आपां
मायड़ भासा
राजस्थानी में
चोखी-चोखी
रचनावां लिखां

अळगी-अळगी
विधा में
नूंवैं सूं नूंवैं
ढंग में लिखां
पछै
सगळी भासावां में
आपां
सै' सूं मोटा दिखां।


आपां
आम आदमी नै बतावां
उणनै मानता री
बात समझावां

आम आदमी कन्नै
नीं है नेट
बीं रौ
खाली पड़्यौ है पेट

आपां
पेट री बात करां
आपां दु:ख बांटण री
बात करां
आपां घर में बात करां
पाड़ौसी सूं बात करां
गळी मौहल्लै बात करां
आपां सै' सूं बात करां

मानता सारू
आम आदमी है धूरी
इणनै जोडऩौ
भौत ही है जरूरी
आम आदमी
दिरावै 'हार'
आम आदमी
परावै 'हार'

आम आदमी
आपां नै
सै' सूं अळगा मानै
पैली ओ भेद मिटावां
पछै भासा माथै आवां

आपां होवां अेक
आपां नै कुण टोक सी
मानता देणी पड़सी
पछै कुण रोक सी।

</poem>
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