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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
धरती अबै भी घूमै
पै'ली भी घूमती
अर आगै भी घूमसी

जिण दिन
थमगी धरती
आपां भी थम ज्यासां

कित्तौ जरूरी है घूमणौ
आओ
आपां घूमां-फिरां

कैया करै
कै
फिरै जिकौ चरै।
</poem>
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