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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
भूख सागै
उजड़्योड़ा गांव-घर रो मोह
खींच ल्यावै नित
स्क्रेप चुगण रै मिस
बां मजूरां नैं
चांदमारी इलाकै में।

पण नीं पेट भरीजै
नीं जीव धापै।

हे विधना!
कींकर अरथाऊं
इण जूण री
करुण-कथा नैं
गळगळा सबदां?
</poem>
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