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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
बरसूं पछै
मेळै में
भायलां भेळो म्हैं
अर सहेल्यां सागै बा।

मोकळी भीड़ में
धक्का-मुक्की बिचाळै
कांई ठाह कींकर
पंदरै बरस लारै जाय'र
बा सोध लाई ओळूं
अर ओळखांण रै ओळावै
सरजीवण कर दियो-
जूनो बगत।
</poem>
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