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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
थूं पिता है जळ
अथाग
थारो हियो-समदर।

म्हैं नाव
थारी लाडकंवरी।

बीज सूं बिरवै
बिरवै सूं बिरछ
बिरछ री लकड़ी सूं
म्हारी घड़ंत
थारै पांण जळमी
पळी-पनपी
अर धर्यो रूप।

बाप री गोदी
लाडां-कोडां
उछळती फिरूं
सात समदर!

</poem>
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