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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
बहुत दिनों के बाद खिले दो फूल हमारे आँगन में।
वो आखों के तारे, वो घर के उजियारे आँगन में।
घर के कोने - कोने में जैसे बहार -सी छाई है,
रंग बिरंगी उड़ें तितलियाँ साँझ - सकारे आँगन में।
जहाँ कभी खामोशी थी अब किलकारी की गूँजें है,
खेल रहा घर पूरा -पूरा प्यारे - प्यारे आँगन में।
स्वच्छ चाँदनी के लिवास में अन्धेरा भी चमक उठा,
रात परी जैसे उतरी है आज हमारे आँगन में।
जेठ गया, आषाढ़ आ गया ठंडक पड़ी कलेजे को,
श्याम सलोने जैसे लगते घन कजरारे आँगन में।
</poem>
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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बहुत दिनों के बाद खिले दो फूल हमारे आँगन में।
वो आखों के तारे, वो घर के उजियारे आँगन में।
घर के कोने - कोने में जैसे बहार -सी छाई है,
रंग बिरंगी उड़ें तितलियाँ साँझ - सकारे आँगन में।
जहाँ कभी खामोशी थी अब किलकारी की गूँजें है,
खेल रहा घर पूरा -पूरा प्यारे - प्यारे आँगन में।
स्वच्छ चाँदनी के लिवास में अन्धेरा भी चमक उठा,
रात परी जैसे उतरी है आज हमारे आँगन में।
जेठ गया, आषाढ़ आ गया ठंडक पड़ी कलेजे को,
श्याम सलोने जैसे लगते घन कजरारे आँगन में।
</poem>