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Kavita Kosh से
तुम्हें मैंने बैजनी कमल कहकर पुकारा
और अब भी अकेलेपन की पहाड़ से उतरकर
गाते हुए दरख़्त के पास
चन्द्रमा को गिटार-सा बजाऊँगा
तुम्हारे लिए
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