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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कहाँ मैं तलाशूँ मज़ा ज़िंदगी का।
तुम्हारी मुहब्बत नशा ज़िंदगी का।
न आँखें ये होतीं, न चेहरा वो होता,
न होता मधुर हादसा ज़िंदगी का।
बड़ी मस्त हैं इस गली की हवाएँ,
कि जिनमें है केशर घुला ज़िंदगी का।
तुम्हारा मिलन हो कि हो वो जुदाई,
इसी में सफ़र है कटा ज़िंदगी का।
मरूँ तो भी दिल में तुम्हारे रहूँ मैं,
बनेगा कहीं मक़बरा ज़िंदगी का।
</poem>
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
}}
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<poem>
कहाँ मैं तलाशूँ मज़ा ज़िंदगी का।
तुम्हारी मुहब्बत नशा ज़िंदगी का।
न आँखें ये होतीं, न चेहरा वो होता,
न होता मधुर हादसा ज़िंदगी का।
बड़ी मस्त हैं इस गली की हवाएँ,
कि जिनमें है केशर घुला ज़िंदगी का।
तुम्हारा मिलन हो कि हो वो जुदाई,
इसी में सफ़र है कटा ज़िंदगी का।
मरूँ तो भी दिल में तुम्हारे रहूँ मैं,
बनेगा कहीं मक़बरा ज़िंदगी का।
</poem>