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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
}}
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<poem>
हम भारत के भाग्य-विधाता मतदाता चिरकुट आबाद।
लोकतंत्र की ऐसी-तैसी नेता जी का ज़िंदाबाद।
वो भी अपना ही भाई है मजे करै करने दे यार,
तू जिस लायक़ तू वह ही कर थाम कटोरा कर फ़रियाद।
बड़े-बड़े ऊँचे महलों से पूछ रहा है मड़ईलाल,
मेरा सब कुछ पराधीन है, किसका भारत है आज़ाद।
हर दल का अपना निशान है, मगर निशाना सब का एक,
पहले भरो तिजोरी अपनी मुल्क-राष्ट्र फिर उसके बाद।
कफ़नचोर खा गये दलाली वीर शहीदों का ताबूत,
फटहा बूट सिपाही पटकैं रक्षामंत्री ज़िंदाबाद।
सच्चाई का पहन मुखौटा ज्ञान बताने निकला झूठ,
मेरी जेब कतरने वाला सिखा रहा मुझको मरजाद।
उससे क्या उम्मीद करोगे उसको बस कुर्र्सी से प्यार,
जनता जाये भाड़ में वो बस अपना मतलब रखता याद।
दारू बँटने लगी मुफ़्त में लगता है आ गया चुनाव,
जा जग्गू जा तू भी ले आ कहाँ मिलेगी इसके बाद।
नेताओं ने वोट के लिए बाँट दिया है पूरा मुल्क,
फिर भी जिंदाबाद एकता बेमिसाल कायम सौहार्द।
</poem>
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हम भारत के भाग्य-विधाता मतदाता चिरकुट आबाद।
लोकतंत्र की ऐसी-तैसी नेता जी का ज़िंदाबाद।
वो भी अपना ही भाई है मजे करै करने दे यार,
तू जिस लायक़ तू वह ही कर थाम कटोरा कर फ़रियाद।
बड़े-बड़े ऊँचे महलों से पूछ रहा है मड़ईलाल,
मेरा सब कुछ पराधीन है, किसका भारत है आज़ाद।
हर दल का अपना निशान है, मगर निशाना सब का एक,
पहले भरो तिजोरी अपनी मुल्क-राष्ट्र फिर उसके बाद।
कफ़नचोर खा गये दलाली वीर शहीदों का ताबूत,
फटहा बूट सिपाही पटकैं रक्षामंत्री ज़िंदाबाद।
सच्चाई का पहन मुखौटा ज्ञान बताने निकला झूठ,
मेरी जेब कतरने वाला सिखा रहा मुझको मरजाद।
उससे क्या उम्मीद करोगे उसको बस कुर्र्सी से प्यार,
जनता जाये भाड़ में वो बस अपना मतलब रखता याद।
दारू बँटने लगी मुफ़्त में लगता है आ गया चुनाव,
जा जग्गू जा तू भी ले आ कहाँ मिलेगी इसके बाद।
नेताओं ने वोट के लिए बाँट दिया है पूरा मुल्क,
फिर भी जिंदाबाद एकता बेमिसाल कायम सौहार्द।
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