भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तेरे जाने पर भी तेरी याद न मन से जाती है।है
घरके कोने-कोने से बस तेरी खुशबू आती है।
कितनी कशिश तुम्हारे भीतर, कितना प्यार छलकता है,
बार-बार तुम ही तुम दिखते याद बहुत तड़पाती है।
तेरे आ जाने से मेरा घर, घर जैसा लगता है,
जिस कमरे को कभी न खोलो वहाँ धूल जम जाती है।
दूर चले जाने से कोई जु़दा नहीं हो जाता है,
कभी-कभी दूरी लोगों को और निकट ले आती है।
पुरखों ने यह सही कहा है सबको वक़्त सिखा देता है,
कल की वो मासूम-सी बच्ची दुल्हन बन शरमाती है।
झाँसी की रानी हो लेकिन, लड़की पहले लड़की है,
शील, आचरण, पावनता के बल पर वो सकुचाती है।
धूप की पहली किरण हो या आषाढ़़ की पहली बारिश हो,
वेा गरीब के खुले-खुले आँगन में पहले आती है।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits