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{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>गोद में माँ की दुबका हुआ बच्चा
ज्ञात-अज्ञात भय से
सो जाता है गहरी नींद
मुट्ठियों में भरकर आंचल की कोर
ठीक ऐसे ही महसूस किया
जब दिन का भय
रात संग गहराता गया
कोई याद आता
जैसे थपकियां दे रही हो माँ
वैसे ही आश्वस्ति
स्नेहिल आवाज में झिलमिल।
</poem>
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|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते
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<poem>गोद में माँ की दुबका हुआ बच्चा
ज्ञात-अज्ञात भय से
सो जाता है गहरी नींद
मुट्ठियों में भरकर आंचल की कोर
ठीक ऐसे ही महसूस किया
जब दिन का भय
रात संग गहराता गया
कोई याद आता
जैसे थपकियां दे रही हो माँ
वैसे ही आश्वस्ति
स्नेहिल आवाज में झिलमिल।
</poem>