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इज़्ज़तपुरम्-38 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
प्रेम का
पतित रूप
वासना भरा
बलात् और छद्म
जिसके हाथ
ज्वालामुखी
उगलें जहाँ लावे
बाह्य त्वचा पर
विकार के विषाणु
जाल बुंनें

पर
प्रेम का
स्थायी रूप
स्नेह भरा
नवसृजन में
सहभागी
समाज को
भद्र दृष्टि
गति दे

दूधिया
स्वच्छ
दीर्घकालिक
मनमोहक
अंकुर से
पौध की
हरीतिमा और
पकी बालियों की
कांति तक
पवित्रता सुगंधि दे
</poem>
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