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|रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
तुम न झुकाओ पलकें,
रीती हो जाएगी
सपनों की गागर.
तुम न ओंठ थिरकाओ,
होगा उद्वेलित
चाहत का सागर.
तुम न आँचल लहराओ ,
आहों का ढेर
लग जायेगा आँगन.
तुम अब न मुस्काओ,
गाने लगेंगें
प्रेमगीत पाहन.
(प्रकाशित- विश्वामित्र, कलकत्ता, १९७९)
</poem>
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तुम न झुकाओ पलकें,
रीती हो जाएगी
सपनों की गागर.
तुम न ओंठ थिरकाओ,
होगा उद्वेलित
चाहत का सागर.
तुम न आँचल लहराओ ,
आहों का ढेर
लग जायेगा आँगन.
तुम अब न मुस्काओ,
गाने लगेंगें
प्रेमगीत पाहन.
(प्रकाशित- विश्वामित्र, कलकत्ता, १९७९)
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