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{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कहते हैं कि
जब जंग होती है
तब सबसे पहले
सच की मौत होती है.
यहां तो रोज़ाना
सच पर बमबारी होती है.
और खाईयों में दुबका सच
जहाजों के गुज़र जाने का
इंतज़ार करता है.
वह सोचता है कि
इससे वह बच जायेगा.
पर सच तो यह है कि
अपने ही मलबों के ढेर में
सच हमेशा के लिए
दब जाएगा.
(लोक-बोध, कलकत्ता, दिसंबर १९८२)
</poem>
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कहते हैं कि
जब जंग होती है
तब सबसे पहले
सच की मौत होती है.
यहां तो रोज़ाना
सच पर बमबारी होती है.
और खाईयों में दुबका सच
जहाजों के गुज़र जाने का
इंतज़ार करता है.
वह सोचता है कि
इससे वह बच जायेगा.
पर सच तो यह है कि
अपने ही मलबों के ढेर में
सच हमेशा के लिए
दब जाएगा.
(लोक-बोध, कलकत्ता, दिसंबर १९८२)
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