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|रचनाकार=दीपिका केशरी
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}}
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<poem>
प्रेम में डूबी स्त्री काठ हो जाती है
और
प्रेम में डूबा पुरुष लोहा !
फिर उस काठ से
चौखटें, दरवाज़े, खिड़कियां, अलमारियां
संदूक बनाएं जाते हैं
उन सारी वस्तुओं में लोहे की कील ठोकें जाते हैं
इस तरह से प्रेम चौखटों, दरवाजों, खिड़कियों,
अलमारियों और छोटे बड़े संदूको में वर्षों जीवित रहता !
</poem>
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प्रेम में डूबी स्त्री काठ हो जाती है
और
प्रेम में डूबा पुरुष लोहा !
फिर उस काठ से
चौखटें, दरवाज़े, खिड़कियां, अलमारियां
संदूक बनाएं जाते हैं
उन सारी वस्तुओं में लोहे की कील ठोकें जाते हैं
इस तरह से प्रेम चौखटों, दरवाजों, खिड़कियों,
अलमारियों और छोटे बड़े संदूको में वर्षों जीवित रहता !
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