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|रचनाकार=सुरेश चंद्रा
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<poem>
बांसुरी के रंध्रों से
बहने दो स्वर
रेशा-रेशा मुक्त कर दो
शब्दों के हर झंझावात से
कृष्ण !
बचा, रचा-बसा
रहने दो मुझमे, केवल
तन्मय धुन का उत्सव
</poem>
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बांसुरी के रंध्रों से
बहने दो स्वर
रेशा-रेशा मुक्त कर दो
शब्दों के हर झंझावात से
कृष्ण !
बचा, रचा-बसा
रहने दो मुझमे, केवल
तन्मय धुन का उत्सव
</poem>