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सब शब्द, रस, स्पर्श, मैथुन, गंध रूप की इन्द्रियां,<br>
हैं प्रभु अनुग्रह से सुलभ मानव को सब ज्ञानेन्द्रियों।<br>
नचिकेता प्रिय उसकी दया से ही विदित संसार मैं,<br>
क्या शेष क्षण भंगुर रहा, क्षय क्षणिक जग व्यापार में॥ [ ३ ]<br><br>
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