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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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<poem>
उत्तर की खोज में चलते हुए कुछ लोग
रचते गये प्रश्नों की पहेलियां
चलते हुए दक्षिण के विपरीत
चलते हुए पूर्व और पश्चिम से दूर
और इस तरह चलते हुए निरंतर
होते गये उत्तरविहीन।

ये यह भूल चुके थे कि
उत्तर के एक बाजू में
खिलखिलाती है प्राची
तो झूमती प्रतीची दूसरे बाजू में
और मुस्कुराता है आंखों में आंखें
पिरोता हुआ दक्षिण
ठीक सामने।

</poem>
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