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स्वयं को परखो / कैलाश पण्डा

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<poem>
बीज में वृक्ष का
निराकर रूप
प्रस्फुटन के पश्चात्
साकार रूप
अरू फलित होने पर
अनेकानेक होना
कल्पना नहीं
अद्वैत से द्वैत होने का
करामाती खेल
किसने नहीं देखा ?
साकार-निराकार की अवधारणा
कितनी हास्यास्पद है बंधु
परमात्मा के लिए
नियम बनाने वाले
अपनी औकात तो देखें
जानना नहीं जानना
अच्छी तरह जानना
महत्वपूर्ण नहीं
वह है इतना समझो
उससे पहले
स्वयं को परखो।
</poem>
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