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अश्रु कणिका / कैलाश पण्डा

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<poem>
तुम्हारे नकारने से
मेरे अस्तित्व में
कमी नहीं आयेगी
कमी नहीं आयेगी
मेरा सूक्ष्म भी तो
परमात्मा के सान्ध्यि में
पल रहा है
छोटे-छोटे अणुओं से
निर्माण हुआ मेरे स्थूल का
तुमने गौर से कब देखा
मुझ शुद्र को
तुम्हारी नजरों में
अये घृणा की बेला
सूक्ष्म स्थूल कारण से परे
अस्तित्व को देखो
मेरे और तुम्हारे मध्य
अंतराल को महसूस करो
अवलोकन तो करो
सत्य का।
</poem>
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