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|रचनाकार=मनोज चारण 'कुमार'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
थाने सिंवरू शारदा, माँ दीज्यो मो बरदान।
निमळापणू हिये बिराजै, हुवै आतमज्ञान।
अरज थासू भारती, माँ निरमल देवो ज्ञान।
ग्यान जोत मन मैं जागै, और मिटे अभिमान।।
बर दयो थे बरदायणी माँ काटो कष्ट कलेश।
हिये च्यानणू उपजै माँ, दयो आशीष हमेश।
कर जोड्यां चारण करै माँ, थासूं आ अरदास।
मो हिये नित राखज्यो माँ, थारोड़ो विश्वाश॥
शत-शत वंदन मात नै, कोटि-कोटि आभार।
मिलै जलम जूण मै, इणी धरा हर बार।
इणी धरा हर बार, माँ किरपा कीजे,
मो पर तो आशीष, सदा ही करती रीजे॥
भाषा जणणी जलमभोम, सैसूं मोटी चीज।
तीनू सींचे जीव नै, जीव इणा नै सींच।
जीव इणा नै सींच, बावळा मती करै संकोच,
मातभोम री वंदना, सैसूं पैली सोच।।
</poem>
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थाने सिंवरू शारदा, माँ दीज्यो मो बरदान।
निमळापणू हिये बिराजै, हुवै आतमज्ञान।
अरज थासू भारती, माँ निरमल देवो ज्ञान।
ग्यान जोत मन मैं जागै, और मिटे अभिमान।।
बर दयो थे बरदायणी माँ काटो कष्ट कलेश।
हिये च्यानणू उपजै माँ, दयो आशीष हमेश।
कर जोड्यां चारण करै माँ, थासूं आ अरदास।
मो हिये नित राखज्यो माँ, थारोड़ो विश्वाश॥
शत-शत वंदन मात नै, कोटि-कोटि आभार।
मिलै जलम जूण मै, इणी धरा हर बार।
इणी धरा हर बार, माँ किरपा कीजे,
मो पर तो आशीष, सदा ही करती रीजे॥
भाषा जणणी जलमभोम, सैसूं मोटी चीज।
तीनू सींचे जीव नै, जीव इणा नै सींच।
जीव इणा नै सींच, बावळा मती करै संकोच,
मातभोम री वंदना, सैसूं पैली सोच।।
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