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अंतत: / सुकेश साहनी
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13:29, 3 जनवरी 2018
अन्तत:
उसने झोंक दिया मुझको
अंसख्य–असंख्य माँओं
बिजली
की
कोखें
भट्ठी में
जहाँ से मेरे
पर
निरन्तर बने रहने की
नहीं छीन सका मुझसे
प्रक्रिया जारी हैं।
अंसख्य–असंख्य माँओं की कोखें ।
</poem>
वीरबाला
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