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ओ मेरे मीत / ज्योत्स्ना शर्मा

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<poem>
21
तुम्हारे लिए
दुआ माँगता दिल
होंठ हैं सिए!
22
क्यों तड़पाना?
नज़दीक आकर
यूँ दूर जाना!
23
मिलो हमसे
मिलती हैं ख़ुशियाँ
गम से जैसे!
24
भीगा तकिया
सीला हुआ रूमाल
कहते हाल!
25
सीली लकड़ी
सुलगती हो जैसे
ज़िन्दा हूँ ऐसे!
26
ओ मेरे मीत
नींद गाए रातों में
तेरे ही गीत!
27
मोह या माया?
समझ ही न पाए
क्या खोया, पाया?
28
घुप्प अँधेरा
उजली किरन सा-
है साथ तेरा।
29
थी तेरी आस
क्यों मिली भटकन
प्यास ही प्यास।
30
माना, था बुरा
मैंने दिल तपाया
हुआ न खरा?
</poem>