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जलमार्ग में लगे संकेत-चिह्नों की, कौवों की, काँय-काँय की,
अखरोट के पेड़ की डाली की, गला घुटने की और
लिखने और चीखने की, बहुत हुआ निर्णायक मोड़।  (मूल जर्मन कविता "Endlich die Krähe..." का अनुवाद: '''अमृत मेहता''')</poem>
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