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कठै गई बा.. / दुष्यन्त जोशी

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कठै गई
बा' छोरी
जकी रोजिना करती
हांसी ठठौ
उछळती-कूदती
गाणां गांवती
आंख्यां मटकांवती
बाळां नै झटकांवती
 
बिना कोई बात रै
बातां में मुळकांवती
फूलां री सौरम ज्यूं
आंगण महकांवती
अकासां ताकती
सुपणां सजावंती
 
आठुवैं बसंत मांय
हुयगी
माड़ै काम री शिकार
उण दिन सूंई
बीं'रौ
बदळग्यौ ब्यौहार।
</poem>
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