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अमरबेल / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
सीधै-सादै रूंखां नै
आपरी बांथां में
लेंवती
चूमती-चाटती
आ' अमरबेल
अेक दिन
उणां रौ
करदयै खातमौ

रूंखां रा रुखाळा
भौत ख्यांत राखै
आपरै रूंखां री

पण
ठा' नीं
कद पसरज्यै
उणां रै च्यारूंचफेर
सोनै जेड़ी रुपाळी
आ' अमरबेल।

</poem>
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