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मरदानगी / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
थूं
दारू पीय'र
आपरी रीस
क्यूं उतारै
आपरी जोड़ायत माथै

जकी
थारै खातर छोड्या
आपरै जलम रा दियाळ
भैण-भाई
अर सखि सहेल्यां

हरमेस
होम हुवण नै
रैवै त्यार
थारै खातर

अर थूं
इण माथै
आ' कांईं
मरदानगी दिखावै

मिणत मजूरी
कर्यां पछै
तन्नै घणकरी बार
नीं मिलै
थारै पसीनै रौ हक

तद थारी मरदानगी
मांदी क्यूं पड़ ज्यावै?
</poem>
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