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बड़लौ / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
लडावण सारू लाड
उडीकतौ हौ
साखां हंदी
किरणां
पसार!

छतर-छांवळी
पूगतां ई
अलेखूं
पींपियां रै मिस
मुळकतौ हौ
थूं।

डाळै-डाळै डुळाय
अंवळी रमाय
भर-भर बाथां
जगावतौ हौ
अणहद उमाव
म्हारै मांय।

अबै जद भण-भणाय
स्हैर सूं बावड़ियां
थारौ खत पंपोळ
थारै ई खांदोळयै चढ
अंवळी रमण नै
उतावळौ हूं
म्हैं

म्हारै इण अपरोगै बणाव रौ
इतरौ अभरोसौ
क्यूं ?
कांई म्हैं
म्हारै ई
हाथां
म्हारा ई
सपना
बाढूंला ?

</poem>
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