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चिड़कल: 2 / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
हरजस
उगेरण
लागै
चिड़कल
अंधारै नै सोधण
पागी
बण
निकळ जावै
सूरज।
</poem>
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