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मां: 1 / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
म्हांनै अमर बणावण री
आस
पल-पल मरै !

म्हांरै सपनां नै
थेपड़ता
छिण-छिण
जागै।

अंधियारा नै अळगौ
उछेर
नित-हमेस
सूरज भळकावै थूं।

धर मजलां धर कूंचां रै
आडै-अंवळै मारग
झीणी मुल-मुल
बण
हालरियौ हुलरावती
म्हांनै चांदा लग चाढै
थूं।
</poem>
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