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{{KKRachna
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सिर्फ़ महलों को बचाती इस व्यवस्था के ख़िलाफ़।
अब हमें लड़ना है पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़।
आदमी के साथ अगर हैं आप तो फिर आज से,
साथ उनका दीजिए लड़ते जो राजा के ख़िलाफ़।
मान रब जिनकी इबादत आज करते हैं सभी,
उम्र भर लड़ते रहे वो व्यक्ति पूजा के ख़िलाफ़।
काट अँगूठा शिष्य का इतिहास दुहराया गया,
जब ज़रा सा भी गया गुरुओं की इच्छा के ख़िलाफ़।
पाँव छूते ही सभी दुष्कर्म करते माफ़, यूँ,
वृद्ध चाचा चौधरी लड़ते हैं राका के ख़िलाफ़।
</poem>
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|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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सिर्फ़ महलों को बचाती इस व्यवस्था के ख़िलाफ़।
अब हमें लड़ना है पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़।
आदमी के साथ अगर हैं आप तो फिर आज से,
साथ उनका दीजिए लड़ते जो राजा के ख़िलाफ़।
मान रब जिनकी इबादत आज करते हैं सभी,
उम्र भर लड़ते रहे वो व्यक्ति पूजा के ख़िलाफ़।
काट अँगूठा शिष्य का इतिहास दुहराया गया,
जब ज़रा सा भी गया गुरुओं की इच्छा के ख़िलाफ़।
पाँव छूते ही सभी दुष्कर्म करते माफ़, यूँ,
वृद्ध चाचा चौधरी लड़ते हैं राका के ख़िलाफ़।
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