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|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
ये झूठ है अल्लाह ने इंसान बनाया।
सच ये है के आदम ने ही भगवान बनाया।

करनी है परस्तिश तो करो उनकी जिन्होंने,
जीना यहाँ धरती पे है आसान बनाया।

जैसे वो चुनावों में हैं जनता को बनाते,
पंडों ने तुम्हें वैसे ही जजमान बनाया।

मज़्लूम कहीं घोंट न दें रब की ही गर्दन,
मुल्ला ने यही सोच के शैतान बनाया।

सब आपके हाथों में है ये भ्रम नहीं टूटे,
ये सोच के हुक्काम ने मतदान बनाया।

हर बार वो नौकर का इलेक्शन ही लड़े पर,
हर बार उन्हें आप ने सुल्तान बनाया।
</poem>
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