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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
ये ख़ुराफ़ात करने से क्या फ़ायदा।
जाति की बात करने से क्या फ़ायदा।

हाय से बाय तक चंद पल ही लगें,
यूँ मुलाकात करने से क्या फ़ायदा।

हार कर जीत ले जो सभी का हृदय ,
उसकी शहमात करने से क्या फ़ायदा।

ये ज़मीं सह सके जो बस उतना बरस,
और बरसात करने से क्या फ़ायदा।

कुछ नया कह सको गर तो ‘सज्जन’ सुने,
फिर वही बात करने से क्या फ़ायदा।
</poem>
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