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{{KKRachna
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ।
पर न रंगों की दुकाँ हैं तितलियाँ।
गुनगुनाता है चमन इनके लिये,
फूल पत्तों की ज़ुबाँ हैं तितलियाँ।
पंख देखे, रंग देखे, और? बस!
आपने देखी कहाँ हैं तितलियाँ।
दिल के बच्चे को ज़रा समझाइए,
आने वाले कल की माँ हैं तितलियाँ।
बंद कर आँखों को क्षण भर देखिए,
रोशनी का कारवाँ हैं तितलियाँ।
</poem>
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|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ।
पर न रंगों की दुकाँ हैं तितलियाँ।
गुनगुनाता है चमन इनके लिये,
फूल पत्तों की ज़ुबाँ हैं तितलियाँ।
पंख देखे, रंग देखे, और? बस!
आपने देखी कहाँ हैं तितलियाँ।
दिल के बच्चे को ज़रा समझाइए,
आने वाले कल की माँ हैं तितलियाँ।
बंद कर आँखों को क्षण भर देखिए,
रोशनी का कारवाँ हैं तितलियाँ।
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