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Kavita Kosh से
तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है।
अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है,है।
तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है।
किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता,
जो मेरे दिल में रहता है हमेशा, वो पराया है।
कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था,
बहुत मजबूर मज्बूर होकर दीप यादों का बुझाया है।
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