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|रचनाकार=[[मोनिका गौड़]]
|अनुवादक=
|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
}}
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<poem>
घणी रात नीं हुई है अजै
ना ई सडक़ां पर पड़्यो है सौपो
आपरी रफ्तार में भाजती
दिल्ली री सडक़ां माथै
आज लाग रैयो है अजीब
पैलां ई केई बेळा
आई हूं अेकली
कर्यो है सफर दूर, दुस्कर,
अणजाण मारगां माथै
बस, ट्रक, जीप, बळधागाडी, पैदल
अर नापी आभै री ऊंचाइयां भी
दिल्ली थारी सडक़ां सूं
म्हनैं हेत हो
अलमस्त घूमता
आईसक्रीम खावता
संसद पर हमलै रै बाद भी
किणी काळी रात सूं नीं डर्यो हो मन
ना लागी ही थूं अजनबी
आज सूं पैलां पूरी दिल्ली ही
मामा रो घर
पण आज नेड़ै सूं निसरती
कार में सूं किणी झांक्यो
तो भी सांस कंठा में आयगी
ट्रैफिक जाम घणो चोखो लाग्यो
अखरण लाग्यो सूनी सडक़ रो
सरणाटो
धूज अर भौ रा सांप
रैंग रैया है,
डस रैया है असुरक्षा रा बिच्छू
दिल्ली
रात री कळमस
चेतै में ज्यादा उतर रैयी है
आवण लागी है ऑटो वाळै री बातां संू भी
साजिस री दुरगंध
जदकै भौतिक रूप सूं
बदळ्यो तो कीं भी कोनी
लागै दामिनी री चिरळाटियां रो असर
अजै तांई हवा में है
पीड़ री पुकार बण
दया री भीख मांगता
आपरै स्त्रीत्व री रक्षा सारू
असफळ कोसिसां वास्तै
मिनखीचारै रै बंद दरवाजा नैं
झकझोरती बा दिसंबर री रात
ठहरी है सफर करती
हर अेकली औरत री चेतना में
अब दिल्ली पैलां बरगी नीं रैयी
लाग्यो है सराप दामिनी री हाय रो
जद ई रैंग रैयो है डर
2017 में भी म्हारी
रग-रग में कंसळै ज्यूं
बदळ रैयी दिल्ली नानैरै सूं
डर-भौ रै घर में।
</poem>
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<poem>
घणी रात नीं हुई है अजै
ना ई सडक़ां पर पड़्यो है सौपो
आपरी रफ्तार में भाजती
दिल्ली री सडक़ां माथै
आज लाग रैयो है अजीब
पैलां ई केई बेळा
आई हूं अेकली
कर्यो है सफर दूर, दुस्कर,
अणजाण मारगां माथै
बस, ट्रक, जीप, बळधागाडी, पैदल
अर नापी आभै री ऊंचाइयां भी
दिल्ली थारी सडक़ां सूं
म्हनैं हेत हो
अलमस्त घूमता
आईसक्रीम खावता
संसद पर हमलै रै बाद भी
किणी काळी रात सूं नीं डर्यो हो मन
ना लागी ही थूं अजनबी
आज सूं पैलां पूरी दिल्ली ही
मामा रो घर
पण आज नेड़ै सूं निसरती
कार में सूं किणी झांक्यो
तो भी सांस कंठा में आयगी
ट्रैफिक जाम घणो चोखो लाग्यो
अखरण लाग्यो सूनी सडक़ रो
सरणाटो
धूज अर भौ रा सांप
रैंग रैया है,
डस रैया है असुरक्षा रा बिच्छू
दिल्ली
रात री कळमस
चेतै में ज्यादा उतर रैयी है
आवण लागी है ऑटो वाळै री बातां संू भी
साजिस री दुरगंध
जदकै भौतिक रूप सूं
बदळ्यो तो कीं भी कोनी
लागै दामिनी री चिरळाटियां रो असर
अजै तांई हवा में है
पीड़ री पुकार बण
दया री भीख मांगता
आपरै स्त्रीत्व री रक्षा सारू
असफळ कोसिसां वास्तै
मिनखीचारै रै बंद दरवाजा नैं
झकझोरती बा दिसंबर री रात
ठहरी है सफर करती
हर अेकली औरत री चेतना में
अब दिल्ली पैलां बरगी नीं रैयी
लाग्यो है सराप दामिनी री हाय रो
जद ई रैंग रैयो है डर
2017 में भी म्हारी
रग-रग में कंसळै ज्यूं
बदळ रैयी दिल्ली नानैरै सूं
डर-भौ रै घर में।
</poem>