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{{KKRachna
|रचनाकार=[[मोनिका गौड़]]
|अनुवादक=
|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
रोज ऊगूं
सिंझ्या नैं ढळूं
जलमती,
सोधती
समझण री आफळ करती
गम जाऊं
आपरी ई सीपी मांय
रोज मरै है
म्हारै मांयलो गीत
छंद-छंद,
आखर-आखर।
सबद
छोडण लागै
आपरी कांचळी
म्हैं गमाय देवूं
म्हारो होवणो, म्हारो अरथ
पण उणीज बगत थे आय बैठो
मन रै मांय
अर म्हैं
फेरूं हरियल होवण री आस में
उठ बैठूं।
</poem>
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|रचनाकार=[[मोनिका गौड़]]
|अनुवादक=
|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
रोज ऊगूं
सिंझ्या नैं ढळूं
जलमती,
सोधती
समझण री आफळ करती
गम जाऊं
आपरी ई सीपी मांय
रोज मरै है
म्हारै मांयलो गीत
छंद-छंद,
आखर-आखर।
सबद
छोडण लागै
आपरी कांचळी
म्हैं गमाय देवूं
म्हारो होवणो, म्हारो अरथ
पण उणीज बगत थे आय बैठो
मन रै मांय
अर म्हैं
फेरूं हरियल होवण री आस में
उठ बैठूं।
</poem>