भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सूखी यादें जब झड़ती हैं।
जाकर आँखों में गड़ती हैं।
अच्छा है थोड़ा खट्टापन,
खट्टी चीजें कम सड़ती हैं।
 
फ़्रिज में जिनको हम रख देते,
बातें वो और बिगड़ती हैं।
 
हैं जाल सरीखी सब यादें,
तड़पो तो और जकड़ती हैं।
 
जब प्यार जताना हो ‘सज्जन’,
नज़रें आपस में लड़ती हैं।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits